और भी उपयोग है गाजर घास के

गाजर घास के साथ मेरे दो दशक (भाग-14)

- पंकज अवधिया


गाजर घास के विभिन्न भागो के प्रयोग से कीटनाशक बनाने के काफी प्रयास हुये है। प्रयोगशाला से खेत स्तर तक ऐसे ढेरो प्रयोगो की जानकारी सन्दर्भ साहित्यो मे मिलती है। अभी भी इस दिशा मे प्रयास चल रहे है। ज्यादातर वैज्ञानिक यह मानते है कि गाजर घास से तैयार सत्व कमजोर कीटनाशक है। इसलिये नीम जैसे सशक्त विकल्प होने के कारण इसकी उपयोगिता नही के बराबर है।


भारतीय किसानो ने जब औषधीय और सगन्ध फसलो की जैविक ेती व्यापक स्तर पर शुरु की तो उनके सामने जैविक आदानो की कमी एक बडी समस्या थी। देश भर मे किसानो से गोमूत्र और गोबर पर आधारित पारम्परिक आदानो को इस्तमाल करना आरम्भ किया गया। उसमे कई प्रकार की वनस्पतियाँ भी मिलायी गयी। नीम पर ज्यादा प्रयोग हुये। पर सफेद मूसली जैसे फसल मे जब नीम आधारित कीटनाशको के दुष्प्रभाव दिखने लगे तो आस-पास उपलब्ध खरपतवारो पर ध्यान गया। इसी क्रम मे गाजर घास पर भी लोगो की नजर पडी। मैने किसानो के साथ मिलकर 30 से अधिक प्रकार की औषधीय और सगन्ध फसलो के लिये नाना प्रकार के मिश्रण तैयार किये फिर बडे स्तर पर खेतो मे इनका प्रयोग किया। कस्तूरी भिण्डी नामक औषधीय फसल कीडो की खान है। ये कीडे उपलब्ध कीटनाशको से मर जाते है पर कीटनाशको का प्रयोग इसके बीजो की सुगन्ध को कम कर देता है। बीजो मे कम सुगन्ध मतलब कम मूल्य की प्राप्ति। साधारण जैविक कीटनाशक जब असफल होने लगे तो बीस प्रकार की वनस्पतियो को मिलाकर हम लोगो से एक मिश्रण तैयार किया। इन बीस वनस्पतियो मे गाजर घास भी एक थी। इस मिश्रण मे गाजर घास की एक विशेष भूमिका थी। इसके बहुत अच्छे परिणाम मिले। आज भी किसान इसका प्रयोग कर रहे है। सब्जियो की फसल मे भी इसका प्रयोग किया जा रहा है। इस मिश्रण के प्रयोग से जहाँ एक ओर आस-पास के खरपतवारो की सफाई हो जा रही है वही कीटनाशको पर होने वाल खर्च भी बच जा रहा है। किसान यह जानते है कि बहुत जल्दी कीट इन्हे सहन करने लग जाते है इसलिये वे नित नये प्रयोग कर इस मिश्रण को और अधिक शक्तिशाली बनाते जाते है।


देश के पौध रोग विशेषज्ञो ने भी गाजर घास के प्रयोग से रोगाणुओ पर नियंत्रण की कोशिश की। औषधीय फसलो मे हमने गाजर घास की सहायता से बहुत से कवक जनित रोगो से फसलो को बचाया। हमने पाया कि पानी के पास उग रही गाजर घास मे अधिक रोगनाशक गुण होते है। आज ज्यादातर प्रयोगशाला स्तर पर इस तरह के प्रयोग हो रहे है। आर्थिक सहायता नही मिलने के कारण इस पर आगे काम नही हो पाता है। इसी कारण नये शोधार्थी भी ऐसे नयी विषयो से दूर भागते है।


प्रयोगशाला मे किये गये बहुत से प्रयोगो मे वैज्ञानिको को गाजर घास के विभिन्न पौध भागो के कई फसलो पर सकारात्मक प्रभाव भी मिले है। पर चूँकि इसे इतना बदनाम कर दिया गया है कि वैज्ञानिक इस तरह के चौकाने वाले प्रयोगो को सामने लाने मे झिझकते है। गाजर घास के सकारात्मक प्रभाव वाले शोध आलेख बडी मुश्किल से पत्रिकाओ मे छप पाते है। टेढे-मेढे प्रश्न किये जाते है और वैज्ञानिक बिरादरी इस तरह की नयी खोज को संश्य से देखती है। विज्ञान सम्मेलनो मे भी खरपतवार के उपयोगो पर अलग से समय नही रखा जाता है। यदि खरपतवारो विशेषकर गाजर घास जैसे खरपतवारो के उपयोगो पर शोध को बढावा दिया जाये बहुत से उन वैज्ञानिको को प्रोत्साहन मिलेगा जिन्होने इसके लिये अपना जीवन समर्पित कर दिया।




(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

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शेष आलेखो के लिये इस कडी को चटकाए गाजर घास के साथ मेरे दो दशक

Comments

मैं आपको मशविरा देने के लायक तो नहीं लेकिन इतना कहने की जुर्रत करूं कि आपने जो ओरिजिनल अल्फाज़ हिन्दी में किए हैं; वे किसी भी क़दीम ज़बान के हो सकते हैं, उन्हें कृपा करके कोष्ठक में अंग्रेजी में भी लिखें. शायद तब आपका लिक्खा ज़्यादा मक़बूल-ओ-माहरुफ़ हो जाए. और आपका जो इरादा है, वो ज़्यादा लोग समझ सकें. शुक्रिया!

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