डाँ. महादेवप्पा : गाजर घास के लिये समर्पित एक जीवन
गाजर घास के साथ मेरे दो दशक (भाग-20)
गाजर घास जागरुकता अभियान ने अभी जोर ही पकडा था कि धारवाड मे आयोजित इस पर प्रथम अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के विषय मे जानकारी मिली। एक शोध पत्र तैयार किया और भेज दिया। इस सम्मेलन की फीस बहुत अधिक थी। आयोजनकर्ताओ को लिखा तो उन्होने कुछ छूट देने की बात कही। अपने खर्च पर ट्रेन पर सवार होकर मै धारवाड पहुँच गया। दुनिया के कोने-कोने से विशेषज्ञ आये थे। मन मे बडा उत्साह था कि इनके साथ मै भी इस सम्मेलन मे शिरकत कर रहा था। वहाँ एक शख्स को देखा जिसके कारण यह विराट आयोजन सम्भव हो पाया था। वे थे डाँ एम.महादेवप्पा। पता चला कि उन्होने धान पर बहुत काम किया है पर गाजर घास के लिये तो जैसे उन्होने अपना जीवन ही समर्पित कर दिया है। मेरी उनसे मुलाकात एक प्रतिभागी जैसी ही रही। सम्मेलन के बाद वापस आकर मैने गाजर घास पर हिन्दी मे एक पुस्तक लिखी। इसे डाँ. महादेवप्पा और उनके कार्यो को समर्पित किया। मैने यह पुस्तक उन्हे भेजी पर भाषा की समस्या होने के कारण शायद उन्होने जवाब नही दिया। अगले ही वर्ष एक दूसरे सम्मेलन मे मेरा फिर से धारवाड जाना हुआ। इस समय वहाँ के परिचितो ने उनसे सीधी मुलाकात करवायी और मैने अपनी पुस्तक उन्हे दिखायी। वे प्रसन्न हुये और उसके बाद से तो वे मेरे मार्गदर्शक बन गये पूरे जीवन के लिये।
उन्होने देशी वनस्पतियो से गाजर घास नियंत्रण पर शोध किया और फिर अकादमिक दायरे से निकलकर जमीनी स्तर पर इस प्रयोग की सार्थकता दिखायी। आम लोगो विशेषकर किसानो ने इसे अपनाया और बहुत बडे क्षेत्र की गाजर घास को नियंत्रित किया। इससे प्रभावित होकर दूसरे प्रदेशो के वैज्ञानिको ने भी इस पर प्रयोग आरम्भ किये। आज इस अनूठे शोध के लिये वे दुनिया भर मे जाने जाते है।
आम तौर वैज्ञानिक अपने ही शोध को सही ठहराते है और दूसरे के कार्यो को बढावा नही देते है। पर डाँ. महादेवप्पा ने गाजर घास के सभी पहलुओ पर काम कर रहे वैज्ञानिको को प्रोत्साहित किया और एक दल बनाया। आज गाजर घास पर जितने शोध हो रहे है उसमे उनकी प्रेरणा का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होने असंख्य व्याख्यान दिये है। सम्मेलन मे कृषि के अलावा दूसरे क्षेत्रो के विशेषज्ञ भी शामिल हुये। पहली बार चिकित्सा विशेषज्ञो और वैज्ञानिको ने मिलकर गाजर घास के विषय मे चर्चा की। बडी संख्या मे बच्चे भी आये। मुझे पता चला कि उनके प्रयास से बहुत से बच्चे गाजर घास पर अपना प्रोजेक्ट प्रस्तुत करने विदेशो मे भी गये। उनका यह प्रोत्साहन मुझे प्रेरित करता है कि मै भी ऐसे ही नयी पीढी की मदद करुँ।
सेवानिवृत होने के बाद भी उन्होने गाजर घास पर दूसरे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। यह भी बहुत सफल रहा। अब वे अगले साल तीसरे सम्मेलन की तैयारी कर रहे है। सेवानिवृत होने के बाद कौन इस तरह की जिम्मेदारी लेने की हिम्मत कर पाता है? जब भी उनसे सम्पर्क होता है वे गाजर घास से सम्बन्धित कार्यो मे व्यस्त रहते है। उन्होने सरल अंग्रेजी मे वैज्ञानिक तथ्यो सहित गाजर घास पर एक पुस्तक लिखी है जो सस्ते मे अभी भी विश्वविद्यालय मे बिकती है। हम लोगो के लिये यह पवित्र ग्रंथ है।
समय-समय पर डाँ.महादेवप्पा को बडे सम्मानो से नवाजा गया पर फिर भी उनकी उपलब्धियो और सेवा के लिये उन्हे अंतरराष्ट्रीय सम्मान से नवाजे जाने की जरुरत है। इससे नयी पीढी को प्रेरणा मिलेगी और ज्यादा से ज्यादा लोग गाजर घास उन्मूलन अभियान से जुडेंगे।
आज ही उनका सन्देश आया कि इस हिन्दी लेखमाला को कन्नड मे अनुवादित कर वे लगातार पढ रहे है। इस सन्देश से मेरा उत्साह बढ गया है।
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
शेष आलेखो के लिये इस कडी को चटकाए गाजर घास के साथ मेरे दो दशक
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