घातक गाजर घास से अंजान बच्चे

गाजर घास के साथ मेरे दो दशक (भाग-16)

- पंकज अवधिया


कुछ वर्षो पहले मै रायपुर के आस-पास खरपतवारो की तस्वीरे उतार रहा था। यहाँ बडे क्षेत्र मे गाजरघास भी फैली हुयी थी। कुछ बच्चो को वहाँ पाकर मै उस ओर बढा। बच्चे न केवल गाजर घास के पास खेल रहे थे बल्कि गाजर घास से खेल रहे थे। उन्होने इसके एलर्जी फैलाने वाले फूलो को कान मे आभूषण की तरह पहन रखा था। यह निश्चित ही चौकाने और दुखी कर देने वाला दृश्य था। उन्हे गाजर घास के दुष्प्रभावो के विषय मे नही मालूम था। मैने उन्हे जानकारी दी और इससे दूर रहने को कहा। जागरुकता के अभाव मे गाँव के बच्चे और बहुत बार शहरी बच्चे भी गाजर घास के पास पहुँच जाते है और अनजाने मे ही नयी बीमारी के शिकार हो जाते है।


जागरुकता का अभाव सार्वजनिक उद्यानो का रख-रखाव करने वाले लोगो मे भी है। देश भर के बहुत से नामी-गिरामी उद्यानो मे मैने इसे उगते देखा है और इसे उखाडा है। उद्यानो तक इसके बीज बेकार जमीन से लायी गयी खाद के साथ पहुँच जाते है। फिर फैलते ही जाते है। छत्तीसगढ मे तो अखबार इस दिशा मे जागरुकता लाने लम्बे समय तक काम करते रहे। वे समय-समय पर उद्यानो मे गाजर घास की तस्वीरे छापते रहे और रख-रखाव करने वालो को कोसते रहे। प्रेस के डर से ही सही पर इसका असर हुआ। अब अखबार इसे पुराने पड गये विषय पर कम छापते है। नतीजन गाजर घास को उद्यानो मे देखा जा सकता है।


अपने भतीजे के जन्मदिवस पर मै उसके एक साथी से मिला जो धूम-धडाके से दूर उदास बैठा हुआ था। उसके हाथ मे इन्हेलर था और उसकी साँस बहुत तेज थी। उसने बताया कि उसे एलर्जी है परागकणो से। इसके लिये वह तेज दवाए लेता है जिससे ठीक से काम नही कर पाता है। दूसरे दिन मै भतीजे के साथ उस मित्र के घर गया। जैसी कि उम्मीद थी आस-पास गाजर घास उगी हुयी थी। यह जानकर आश्चर्य हुआ कि उसके माता-पिता इससे वाकिफ थे और उन्होने इस खरपतवार के विषय मे नयी-नयी जानकारियाँ दी। पर घर से बाहर निकलकर इसे उखाडा नही। हम लोगो ने नमक के घोल से इसे नष्ट किया और वापस आ गये। कुछ ही दिनो मे मित्र की बीमारी ठीक होने लगी। अबकी बार जन्म दिवस पर उसके साथ डाँस करने की बाट जोह रहा हूँ मै।


बहुत से बच्चे ऐसे भी मिले जिन्हे एलर्जी होने पर बाहर घूम कर आने की डाक्टरी सलाह मिलती है। सम्पन्न पालक बच्चो को स्विटजरलैड तक घुमा लाते है। पर वापस आकर समस्या वैसी की वैसी हो जाती है। बहुत सी वनस्पतियो से परगाकण साल के कुछ विशेष महिनो मे ही निकलते है पर गाजर घास साल भर उगती है इसलिये इसे नष्ट करने के अलावा कोई दूसरा चारा नही है। गाजर घास को उगने देने और बच्चो को महंगी दवा खिलाते जाने मे कोई समझदारी नही है। छत्तीसगढ की औद्योगिक नगरी भिलाई मे गाजर घास से प्रभावित बहुत से बच्चे है। यहाँ हर बार गाजर घास को नष्ट करने के लिये करोडो खर्चे जाते है। बडे-बडे आयोजन किये जाते है पर फिर भी गाजर घास खत्म नही होती है। यहाँ गाजर घास के लिये ठेका दिया जाता है। ठेकेदार गाजर घास के फूलने का इंतजार करते है। फिर तलवारनुमा औजार से गाजर घास को काट देते है। बीज गिर जाते है जमीन मे अगले मौसम के लिये। इस तरह वे अपने अगले ठेके की तैयारी कर लेते है। समस्या बनी रहती है और उन्हे काम मिलता रहता है।


कालेज की शिक्षा के दौरान बंगाल के मोहनपुर जाना हुआ। वहाँ गाजर घास का जबरदस्त प्रकोप है। दुर्गा पूजा के दौरान तो इससे प्रभावित रोगियो की संख्या मे अप्रत्याशित वृद्धि हो जाती है। हमे बताया गया कि डाक्टरो को सतर्क कर दिया जाता है और सम्बन्धित दवाईयाँ मंगा ली जाती है। पता नही अब वहाँ कैसे हालात है?


रायपुर के एक चिकित्सक है डाँ. अग्रवाल। उन्हे मेरे अभियान के विषय मे जानकारी है। मैने उन्हे अपनी पुस्तक भी भेट की है। उनके पास जब कभी भी गाजर घास से प्रभावित मरीज विशेषकर बच्चे आते है तो पहले वे उन्हे मुझसे मिलने का परामर्श देते है। मुझसे उपाय जानने के बाद मरीज उनके पास जाते है और फिर डाक्टर साहब चिकित्सा करते है। मै उनका आभारी हूँ जो इस तरह से वे रोगियो को जागरुक करते है। मैने कई बार रोगियो के साथ जाकर गाजर घास को नष्ट किया है। जब उन्होने फीस देनी चाही तो उनसे यही कहा कि कम से कम दस लोगो को नि:शुल्क सलाह दीजियेगा, फिर मेरी फीस अपने आप वसूल हो जायेगी।

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

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