गाजर घास के साथ मेरे दो दशक (भाग-1)
गाजर घास के साथ मेरे दो दशक (भाग-1)
एक राष्ट्रीय विज्ञान सम्मेलन मे भाग लेने मै बस से जबलपुर से मंडला जा रहा था। यह 1998 की बात है। सडक के दोनो ओर गाजर घास फैली हुयी थी। जब बस घाटी मे पहुँची तो जंगलो के अन्दर भी मुझे इसका फैलाव दिखा। मैने एक सहयात्री से पूछा’ ‘क्या आप इसे पहचानते है?’ उन्होने तपाक से कहा,’ हाँ यह राम फूल है?’ गाजर घास जैसे हानिकारक़ खरपतवार के लिये इतना अच्छा नाम सुनकर मुझे क्रोध आया और अचरज भी हुआ। फिर जब उन्होने इस नाम के पीछे छिपे कारण को बताया तो सब समझ मे आ गया। ‘यह उसी तरह हर जगह फैली हुयी है जिस तरह भगवान राम।‘ बस इस एक वाक्य ने इसके फैलाव से जुडे सत्य को बता दिया।
छात्र जीवन मे दसवी कक्षा मे बच्चो के लिये आयोजित विज्ञान सम्मेलन मे तात्कालिक भाषण प्रतियोगिता ले लिये मै धमतरी गया। प्रतियोगियो को चिट निकालनी पडती थी फिर चिट पर लिखे विषय पर भाषण देना होता था। मुझे गाजर घास पर बोलने के लिये कहा गया। उस समय किताबी ज्ञान था थोडा बहुत इसलिये ज्यादा अच्छे से नही बोल पाया। बाद मे मैने इस पौधे के विषय मे विस्तार से जानकारी एकत्र की। जब कृषि विज्ञान की शिक्षा लेनी शुरु की तो फिर इस खरपतवार से मेरा चोली-दामन का साथ हो गया। खरपतवार विज्ञान विषय मे नाना प्रकार के खरपतवारो के विषय मे बताया जाता था पर मेरा ध्यान इसी पर केन्द्रित रहा। आज गाजर घास से परिचय हुये दो दशक से अधिक बीत गये। मैने सैकडो लेख लिखे, व्याख्यान दिये और पर्चे बाँटे पर जब मै पीछे मुडकर देखता हूँ तो मुझे लगता है कि जैसे मैने कुछ भी नही किया। इन दो दशको मे गाजर घास दिन दोगुनी रात चौगुनी की गति से बढती गयी और मै अकेला कुछ भी नही कर पाया। इससे अपना नाम जोडकर कितने लोग आम से विशिष्ट बन गये, कनिष्ठ से वरिष्ठ बन गये पर गाजर घास का बाल भी बाँका नही हुआ। दुनिया भर के गाजर घास विशेषज्ञ दो बार मिल कर योजनाए बना चुके और अब तीसरी बार मिलने की कोशिश कर रहे है पर इसका निर्बाध फैलाव जारी है। हमारा देश इससे विशेषतौर पर प्रभावित है। आयातित गेहूँ के साथ इसने क्या प्रवेश किया इसे भारत भा गया। आज देश के सभी कोनो मे यह खरपतवार कहर ढा रहा है। आम लोग अब इससे लडना छोड साथ रहने की आदत बना रहे है। इससे होने वाली एलर्जी के लिये इसे नष्ट करने की बजाय दवाओ का सहारा ले रहे है। गाजर घास का मुद्दा अब मीडिया के लिये पुराना हो चुका है। उसे इसमे किसी तरह की सनंसनी नजर नही आती है। यही कारण है कि महिनो तक देश भर मे कही इसके विषय मे नही छपता। पिछले दो दशको से इसे लगातार देखने और जानने की कोशिश मे मै ही इसकी एलर्जी का शिकार हो गया। चिकित्सको की सख्त हिदायत है कि मै इससे दूर रहूँ। पर इसके समूल नाश का बीडा जो मैने उठाया है वह दूर बैठ कर तो पूरा होने से रहा। इस लेखमाला मे मै इस खरपतवार के साथ बिताये दो दशको के दौरान जो अनुभव हुये, उनके विषय मे लिखूंगा।
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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