गाजर घास पर दुनिया की पहली वेबसाइट
गाजर घास के साथ मेरे दो दशक (भाग-22)
गाजर घास पर आयोजित प्रथम अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान दुनिया भर के वैज्ञानिको ने यह तय किया कि एक संगठन बनाया जाये ताकि समान विचार वाले इतने सारे विशेषज्ञ मिलकर इस खरपतवार से निपट सके। इस संगठन का नाम रखा गया ‘आईपान’ (इंटरनेशनल पार्थेनियम नेटवर्क)। पर जैसा कि अक्सर होता है सम्मेलन के बाद सारा काम ठंडा पड गया। इन सब के लिये किसी एक को नेतृत्व सम्भालना पडता है और अक्सर लोग एक दूसरे से यह अपेक्षा करते रहते है। सम्मेलन से वापस लौटने के बाद मैने पत्र के माध्यम से सभी वैज्ञानिको को जोडे रखा और एक पत्रिका निकालने का निश्चय किया। इसका नाम रखा गया ‘इंटरनेशनल पार्थेनियम न्यूज’। बमुश्किल से एक अंक निकल पाया कि फिर आर्थिक समस्या उठ खडी हुयी। सभी सदस्यो ने पैसे नही दिये और मुझे समझाया गया कि कम से कम एक साल तो इसे आप अपने खर्च पर चलाये। यह सम्भव नही था फिर सस्ते विकल्प की तलाश शुरु हुयी। अंत मे एक वेबपेज बनाकर यह काम शुरु करने का निर्णय हुआ। यह वेबपेज बन गया और मुम्बई से संचालित होने लगा। यह सभी के लिये मुफ्त था। इसमे गाजर घास पर नवीनतम शोध की जानकारी शामिल की जाने लगी। वैज्ञानिको के पत्र शामिल होने लगे। गाजर घास के दसो चित्र आने लगे दुनिया भर से। कुछ समय मे ही इंटरनेशनल पार्थेनियम रिसर्च न्यूज ग्रुप के नाम से दुनिया की पहली वेबसाइट गाजर घास पर बन गयी। आज भी यह दुनिया की एकमात्र साइट है जो एक खरपतवार के बारे मे इतने विस्तार से जानकारी प्रदान करती है। दुनिया भर मे असंख्य लोग अब तक इस वेबसाइट का उपयोग कर चुके है। हजारो शोध पत्रो मे इसका उल्लेख मिलता है। आज भी ‘पार्थेनियम’ खोजने पर गूगल मे सबसे ऊपर यही दिखती है। मैने इस वेबसाइट से वैज्ञानिको के अलावा उन सभी को जोडने का प्रयास किया जो प्रत्य़क्ष और अप्रत्यक्ष रुप से गाजर घास से जुडे है।
पहले इंटरनेट पर हिन्दी मे लिखना कठिन था। मेरी हमेशा से यह इच्छा रही कि गाजर घास पर इस वेबसाइट मे हिन्दी मे भी जानकारियाँ हो। अब यह स्वप्न साकार होता दिखता है। कुछ ही दिनो मे हिन्दी आलेख भी आपको इसमे पढने मिलेंगे। आपने डाँ. महादेवप्पा की जिस पुस्तक के विषय मे ऊपर पढा उसे भी मैने इस साइट पर डाल दिया है। इसकी कीमत बहुत कम है पर साइट पर तो यह बिल्कुल ही मुफ्त है।
आपको रोज नयी जानकारी मिले और आप मुम्बई मे बैठे संचालक से कहे कि इसे साइट मे शामिल करो तो निश्चित ही पैसे की बात होगी। उस समय मेरे पास कम्प्यूटर नही था। मै साइबर कैफे से यह काम करता था। संचालक ने पैसो की माँग शुरु कर दी। रोज नयी जानकारी डालने के बदले यह तय किया गया कि साल मे दो बार ही यह कार्य होगा। यह कठिन निर्णय ले लिया गया। धीरे-धीरे साल मे एक बार ऐसा होने लगा। यह तो अच्छा था कि शुरु मे ही मेहनत करके बहुत सारी जानकारियाँ डाल दी गयी थी। संचालक से विवाद के चलते दो सालो तक सब कुछ रुका रहा। अब हिम्मत करके अपने ही शहर के संचालक के हाथो मे इसे पहुँचाया है। अब उम्मीद है कि रोज नयी जानकारी शामिल करने का स्वप्न साकार हो पायेगा।
इस वेबसाइट मे एक तरफा संवाद होता देख मैने याहू मे एक ग्रुप बनाया और इसमे चर्चा आरम्भ की। एक ही विषय मे लगातार चर्चा मुश्किल है। फिर भी यह याहू ग्रुप सक्रिय है और नये लोगो के लिये वरिष्ठो से जुडने का मंच बना हुआ है। समस्या के हल होते तक अलख जगाये रखना जरुरी है। इसी का प्रयास मै कर रहा हूँ।
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
शेष आलेखो के लिये इस कडी को चटकाए गाजर घास के साथ मेरे दो दशक
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