गाजर घास जागरुकता अभियान और बच्चे

गाजर घास के साथ मेरे दो दशक (भाग-15)

- पंकज अवधिया



आज सभी वर्ग के लोगो को गाजर घास के खतरो के विषय मे बताना जरुरी है पर मैने अपने अनुभव से यह जाना है कि बच्चो तक यह बात पहुँचाना जरुरी है। क्योकि यह कहा गया है कि यदि आपने बच्चो को सचेत कर दिया मतलब एक पूरी पीढी को सचेत कर दिया। अपने गाजर घास जागरुकता के दौरान मै देश भर के हजारो स्कूलो मे गया और सरल भाषा मे इसके विषय मे बताया। उन्हे गाजर घास की पहचान करायी और फिर इससे होने वाले नुकसानो के विषय मे बताया। जिन स्कूलो मे स्लाइड प्रोजेक्टर उपलब्ध था वहाँ रोचक स्लाइडस दिखायी। इससे बच्चे और अधिक रुचि लेते थे। बाद मे मैने गाजर घास पर एक छोटी से फिल्म भी बनायी। मै उन स्कूलो मे भी गया जहाँ बिना बिजली व्याख्यान देना पडा। फिर भी बच्चो का उत्साह देखते ही बनता था। बीस मिनट के व्याख्यान मे कम से कम 5 बार बच्चो को हँसी आनी चाहिये ताकि उनका मन लगा रहा। फिर उनसे चर्चा कर यह सुनिश्चित करना भी जरुरी होता कि सही जानकारी उन तक पहुँची या नही।


बालमन बहुत कल्पनाशील होता है। ज्यादातर बच्चे व्याख्यान सुनते-सुनते ही गाजर घास की परिकल्पना करने लगते है और यदि उनकी झिझक दूर रहे तो व्याख्यान के समाप्त होते ही उनके प्रश्न आ जाते है। यह सब सालो से चल रहा है। बहुत सारे बच्चे अब शिक्षा समाप्त कर बडे ओहदो पर है। अभी भी समाचार आते रहते है किसी जिलाधिकारी ने गाजर घास चलाया या किसी ने इस पर लिखा। मुझे लगता है जैसे आधा काम पूरा हो गया।


कई स्थानो पर अतिउत्साह मे मास्टर जी मेरे आने से पहले फावडा आदि लेकर बच्चो को तैयार रहने को कहते है ताकि गाजर घास उखाडी जा सके। मै उखाडने वाले अभियान मे बच्चो के शामिल होने के खिलाफ हूँ। इन्हे एलर्जी का खतरा बहुत अधिक होता है। नाक-कान बाँध लेने के बाद भी। पिछले कुछ वर्षो से देश भर मे गाजर घास जागरण सप्ताह या पखवाडा मनाया जाता है। इस समय विभिन्न टीवी चैनलो मे बच्चो को बढ-चढ कर हिस्सा लेते दिखाया जाता है। मुझे यह बडा ही अटपटा लगता है। मै अपने लेखो के माध्यम से इस पर लगातार लिखता रहा हूँ। ऐसे अभियान मे डाक्टर का होना जरुरी है- मै पहले ही इस बारे मे लिख चुका हूँ।


मुझे मध्यप्रदेश विज्ञान सभा के उत्साही कार्यकर्ताओ की याद आ रही है। उन्होने बहुत दिनो तक मुझे बच्चो के सामने व्याख्यान देने आमंत्रित किया। कभी पेंटिंग प्रतियोगिया करवायी तो कभी वाद-विवाद। एक बार तो आरंग के पास महानदी के तट पर एक कार्यशाला का आयोजन हुआ। इसमे मैने गाजर घास पर व्याख्यान दिया फिर बच्चो ने मिलकर एक कठपुतली नाटक रचा इस पर। गजब का अनुभव रहा यह जीवन का।


स्कूलो मे व्याख्यान ने कवि ह्र्दय वाले बच्चो को खूब प्रेरित किया। बच्चो ने ढेरो कविताए लिखी। एक बार महासमुन्द यात्रा के दौरान मैने गाजर घास पर एक छत्तीसगढी गीत भी सुना। आप माने या न माने पर बच्चो मे प्रकृति प्रदत्त वैज्ञानिक छुपा होता है। हमारी शिक्षा प्रणाली इस वैज्ञानिक को समाप्त कर देती है पर फिर भी बहुत से बच्चो मे गजब का माद्दा होता है नयी समस्याओ को सुलझाने का। यही कारण है कि आप हर एक-दो महिने मे पढेंगे कि अमुक छात्र ने गाजर घास को नष्ट करने के उपाय विकसित किये। ज्यादातर मामलो मे वैज्ञानिक बिरादरी से उन्हे प्रोत्साहन नही मिल पाता। उनसे बडे-बडे प्रश्न किये जाते है फिर उनसे पढाई पूरी करने की बात कही जाती है पर मेरा मानना है कि बच्चो ने इस उम्र मे इस पर सोचा यही हमारे लिये बहुत बडी उपलब्धि है।



गाजर घास पर व्याख्यानो का एक असर यह भी हुआ कि बच्चो ने विज्ञान मेलो के लिये इस पर प्रोजेक्ट बनाना आरम्भ किया। रायपुर के बच्चो द्वारा इसके विभिन्न आयामो पर तैयार प्रोजेक्ट वर्षो तक राष्ट्रीय स्तर पर पुरुस्कृत होता रहा। बच्चे मन लगाकर शोध भी करते थे। वे किसानो से लेकर आम आदमियो से मिलकर पहले यह विश्लेषण करते कि गाजर घास के प्रति कैसी जागरुकता है। फिर कम जागरुकता वाले क्षेत्रो मे जागरुकता अभियान चलाते। आखिर मे एक रपट बनाकर अलग-अलग स्तरो तक इसे पहुँचाते। राष्ट्रीय स्तर पर निर्णायक ऐसे प्रयासो की जमकर तारीफ करते थे। बच्चो का हरे कैसर पर प्रोजेक्ट देश भर मे लोकप्रिय हो गया। इससे अन्य शहरो के बच्चे भी जान पाये कि गाजर घास क्या है? ऐसे सतत प्रयासो की जरुरत है।



(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

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