अपने हित के लिये नही विश्व हित के लिये करे रतनजोत (जैट्रोफा) का विरोध
अपने हित के लिये नही विश्व हित के लिये करे रतनजोत (जैट्रोफा) का विरोध
- पंकज अवधिया
जैसे ही नवम्बर और दिसम्बर 2007 मे रतनजोत (जैट्रोफा) के जहरीले बीज खाकर सैकडो बच्चो के अस्पताल पहुँचने के समाचार इंटरनेट पर आने लगे पूरी दुनिया मे बवाल मच गया। मेरे जैसे बहुत से लोगो ने इन समाचारो को और उपयोगी बनाने के लिये इस पर लेख लिखना आरम्भ किया। मैने अपनी ओर से बहुत सी राष्ट्रीय पत्रिकाओ को इस विषय पर खबर और लेख प्रकाशित करने का अनुरोध किया पर उन्हे इसमे दम नही दिखा। कई रतनजोत समर्थको ने मुझे लिखा कि आप ऐसी खबरो को हवा देना बन्द करे। जनवरी के आरम्भ तक ऐसे समाचार छपते रहे फिर अचानक जी इंटरनेट पर ऐसे समाचार गायब होने लगे। अब गल्ती से ऐसा कोई समाचार आता भी है तो कुछ ही घंटो मे उस लिंक मे कुछ नही मिलता है। अर्थात समाचार हटा (या हटवा) दिये जाते है। स्थानीय समाचार पत्र अभी भी ऐसे समाचारो को छाप रहे है पर उनकी पहुँच अंतराष्ट्रीय मंच तक नही है। इससे बात स्थानीय स्तर तक सीमित रह जाती है। भारत मे रतनजोत को सफल बताकर फिलिपींस जैसे देशो मे इसे लगाया जा रहा है। चूँकि ऐसे समाचार दूसरे देश मे खलबली पैदा कर सकते है अत: रतनजोत समर्थक जी जान से जुटे हुये है। वे एक जुट है और इसलिये वे रतनजोत विरोधियो से अधिक सफल दिख रहे है।
रतनजोत का विरोध कर रहे बहुत से लोग इसका इसीलिये विरोध कर रहे है क्योकि इसका विरोध करना है। उनके पास विरोध के सशक्त बिन्दुओ की जानकारी नही पहुँचायी गयी है। इसीलिये जब उनका किसी विशेषज्ञ समर्थक से सामना होता है तो कुछ ही मिनटो मे उनके तर्क कमजोर पडने लगते है। अब तो रतनजोत का विरोध राजनीतिक भी हो गया है। आम आदमी के अहित से जुडा हुआ यह मुद्दा जब राजनीतिक मंच से उभरता है तो कई झूठ उसमे शामिल हो जाते है। इससे हानि जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओ को ही होती है।
मैने अपने अनुभवो से यह देखा है कि बहुत सी विदेशी संस्थाए अचानक से रतनजोत के विरोध मे सामने आ गयी है। इनमे से बहुत सी संस्थाए बायो-फ्यूल का विरोध कर रही है। इससे उनपर डीजल लाबी द्वारा उकसाये और पैसे दिये जाने के आरोप भी लगते रहे है। बुनियादी तौर पर मै बायो-फ्यूल का विरोधी नही हूँ पर जिस तर्ज पर रतनजोत को पूरी धरती पर फैलाया जा रहा है उसका विरोध मै करता हूँ। ऐसे भी विकल्प मौजूद है जिससे पर्यावरणॅ और आम लोगो को नुकसान पहुँचाये बिना ही पेट्रोल और डीजल की पूर्ति की जा सकती है फिर यह एक ही वनस्पति को इतने बडे क्षेत्र मे लगाने से होने वाली हानियो को नजर अन्दाज करने का तुक समझ से परे है। रतनजोत का विरोध बायो-फ्यूल का विरोध नही है। पर इस स्पष्ट स्वीकरोक्ति के बाद भी विदेशी संस्थाए निरंतर सम्पर्क बनाने की कोशिश मे रहती है। एक देशी संस्था के आमंत्रण पर मै एक सम्मेलन मे गया। वहाँ सम्मेलन के प्रायोजको की सूची देखी तो माथा ठनका। अन्य प्रतिभागियो से पूछा तो उन्होने बताया कि इसमे कई संस्थाए तो बदनाम है। हमने आयोजको से पूछा पर उन्होने टाल दिया। बाद मे देशी प्रतिभागियो को अहसास होने लगा कि हम किसी बडी संस्था की कठपुतली मात्र है। यदि रतनजोत का सही मायने मे विरोध करना है तो सभी खुलकर एक जुट होकर सामने आये और कुछ भी आपस मे न छुपाये।
इसमे कोई दो राय नही कि मेरे अपने प्रदेश छत्तीसगढ मे रतनजोत को बहुत प्रोत्साहन दिया गया। पर आज न केवल भारत बल्कि दुनिया भर मे इसे रोपा जा रहा है। यह अब दुनिया के पर्यावरण के लिये खतरा बनता जा रहा है। दुनिया भर के पर्यावरण विशेषज्ञ चिंतित है पर राज्य आधारित राजनीति करने वाले मुझसे उम्मीद करते है कि मै विश्व स्तर पर इस मुद्दे को उठाने की बजाय राज्य विशेष मे ही यह मुद्दा उठाऊँ ताकि वे अपना मतलब साध सके। कुछ माह पहले मुझे विदेश से एक सन्देश मिला ”हमे सूचना मिली है कि अमुक राज्य मे रतनजोत लगाने के लिये 4000 गाँव खाली करवा दिये गये। आप इसकी पुष्टि करिये’।“ मैने कोई जवाब नही दिया। फिर तो ऐसे सन्देशो की झडी लग गयी। विदेशी अखबारो से भी ये सन्देश आने लगे। सन्देशो मे लिखा होता था कि इस सूचना को देने वाले ने आपके हवाले से यह दावा किया है। मैने उनको जवाब नही दिया। ये सब मेरा एक सन्देश चाहते थे पुष्टि के लिये जिससे इस अफवाह को हवा देकर अपना उल्लू सीधा किया जा सके। थकहार कर नये सन्देश आने लगे। गाँवो की संख्या कम कर दी गयी। बाद मे तो एक-दो गाँव की बात कही जाने लगी। पर फिर भी मै खामोश ही रहा। इस घटना ने सचेत कर दिया कि समझदार लोग किस-किस तरह से अपने हित के लिये आपका उपयोग कर सकते है।
पिछले कुछ महिनो मे मैने देश भर मे रतनजोत से हो रहे नुकसानो की तस्वीरे ली और आँकडे एकत्र किये। अब इस पर एक रपट बना रहा हूँ जो यह बतायेगी कि रतनजोत नामक यह विदेशी पौधा कैसे भारतीय वनस्पतियो और जंगलो पर कहर ढा रहा है? कैसे कीडो से सुरक्षित कही जाने वाली यह वनस्पति 20 से अधिक प्रकार के कीडो के कारण नष्ट हो रही है? कैसे रतनजोत का व्यापक रोपण चिडियो को नुकसान पहुँचा रहा है? कैसे भू-जल स्तर घट रहा है और कैसे हजारो बच्चे अपना दिमागी संतुलन खोते जा रहे है इसके कारण? मेरा मानना है कि सशक्त प्रमाणो के आधार पर विरोध अधिक कारगर होगा।
एक सम्मेलन के दौरान मैने भोजन के दौरान एक राजनेता से पूछा कि आप चाहे तो अपने प्रभाव से आज ही रतनजोत पर पुनर्विचार के लिये सरकार को सहमत कर सकते है तो वे बडी बेशर्मी से बोले कि आप दशको तक चलने वाले मुद्दे को एक झटके मे खत्म करना चाहते है। अभी तो इसे लगने दीजिये जब बाद मे नुकसान सामने आयेंगे तो इसी आधार पर कई चुनाव जीते जायेंगे। कितने लोग विरोध के व्यापार से फलेंगे, फूलेंगे। मै एकटक विस्मित सा उन्हे देखता रहा। ऐसा लगा जैसे मै रतनजोत के इंसानी रूप से बात कर रहा हूँ।
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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