रतनजोत उखाडकर नष्ट करने का फरमान, आओ! मेरठ प्रशासन का करे सम्मान

पिछले दिनो मेरठ से खबर आयी कि स्थानीय प्रशासन ने आम निवासियो से अनुरोध किया है कि वे अपने आस-पास उग रहे रतनजोत को उखाड फेके। जहाँ एक ओर पूरे देश मे डीजल के विकल्प के रुप मे इस पौधे को लगाया जा रहा है ऐसे मे इस तरह का फरमान सामने आये तो इससे सबका चौकना तय था। समाचार के अनुसार मेरठ के आस-पास बच्चो द्वारा रतनजोत के बीज को खाकर बीमार होने के पचास से अधिक मामले सामने आये तो नाराज पालको ने प्रदर्शन किया। इसी को देखते हुये प्रशासन ने रतनजोत के नुकसान को भाँपते हुये इसे तुरंत ही उखाडने का निर्देश दे दिया। रतनजोत (जैट्रोफा) के दुष्प्रभावो को जानने वाले ऐसे फरमानो की उम्मीद बहुत वर्षो से कर रहे थे। आज पूरे देश मे आम लोगो को इस जहरीले पौधे के विषय मे पूरी जानकारी दिये बिना ही व्यापक पैमाने पर इसे लगाया जा रहा है। परिणामस्वरुप इसके हानिकारक प्रभाव सामने आने लगे। आज यह कोई नही बता पा रहा है कि रतनजोत से बायोडीजल कब बनेगा पर मनुष्यो से लेकर वन्य प्राणियो तक सभी के लिये यह विदेशी पौधा अभिशाप बनता जा रहा है।
आज सारा देश क्रिकेट, फिल्मो और राजनीति पर चर्चा कर रहा है। ऐसे मे बहुत कम लोग जानते है कि पिछले वर्ष से अब तक सैकडो बच्चे रतनजोत के बीज खाकर अस्पतालो मे पहुँच चुके है। ऐसा केवल भारत मे नही हुआ बल्कि पूरे विश्व मे हुआ जहाँ भी इसके दुष्प्रभावो को जाने बिना इसे लगा दिया गया। रतनजोत के बीज स्वादिष्ट होते है और तीन से चार बीज एक बच्चे की जान लेने के लिये काफी है। हजारो हेक्टेयर मे रोपा गया रतनजोत आज बच्चो को खुला निमंत्रण दे रहा है कि वे आये और बीजो को खाकर बीमार हो जाये। इस जहरीले पौधे के व्यापक रोपण से पहले आम लोगो विशेषकर बच्चो को इसके विषय मे जागरुक नही किया गया। मैने ऊपर सैकडो बच्चो की बात लिखी है यह आँकडा उन खबरो पर आधारित है जिन्हे मै इंटरनेट के माध्यम से एकत्र कर रहा हूँ। जमीनी स्तर पर यह आँकडा कई गुना अधिक होगा।
तकनीकी विषय होने के कारण हमारा मीडिया रतनजोत के सभी पहलुओ पर नही लिख पाता है। उसे जो सामग्रियाँ दे दी जाती है उन्हे वैसी ही प्रकाशित कर दिया जाता है। यही कारण है कि रतनजोत के विषय मे मनगढंत दावो से भरे समाचार लगातार सामने आ रहे है पर जमीनी स्तर की खबरे नही छप पा रही है। मेरठ का ही उदाहरण ले। सारे देश को आगे आकर अपनी भावी पीढी को बचाने का प्रयास करने वाले मेरठ प्रशासन को इस कदम के लिये सम्मानित करना चाहिये था और इस तरह के प्रतिबन्ध को पूरे देश मे लागू करना चाहिये था। पर हुआ इसका उल्टा। कुछ ही अखबारो ने इस महत्वपूर्ण समाचार को छापा और जल्दी ही यह हाशिये मे चला गया। नतीजतन आज भी सारे देश मे रतनजोत का ताँडव मचा हुआ है और बच्चो का अस्पतालो मे आने का सिलसिला जारी है।
पहले रतनजोत के समर्थको ने कहा कि भारतीय बच्चे नादान है। वे कुछ समय बाद सीख जायेंगे कि यह जहरीला पौधा है और इससे दूर रहना चाहिये। इसी आधार पर रतनजोत को स्कूलो के अन्दर और सार्वजनिक स्थानो मे रोप दिया गया। पिछले कुछ महिनो से मै देश के अलग-अलग हिस्सो मे रतनजोत प्रभावित बच्चो से मिल रहा हूँ। छत्तीसगढ मे जब मैने अस्पतालो से छुट्टी पा चुके बच्चो के पालको से बात की तो उन्होने खुलासा किया कि उनके बच्चे सुस्त हो गये है इस घटना के बाद। उनमे दिमागी परिवर्तन आये है और आम बच्चो की तुलना मे पढाई मे कमजोर हो रहे है। रतनजोत के बीज खाने से दिमाग मे पडने वाले दुष्प्रभाव का वर्णन वैज्ञानिक दस्तावेजो मे भी उपलब्ध है। ऐसे बच्चो से बात करना निश्चित ही दुखदायी अनुभव है। यह मन को आक्रोशित करता है।
रतनजोत के अलग-अलग पहलुओ पर मै लिखता रहता हूँ। इस लेख का उद्देश्य मेरठ प्रशासन के सही निर्णय को एक बार फिर से आम जनता के सामने लाना है ताकि देश भर के लोग आगे आकर अपने बच्चो की रक्षा के लिये ऐसे ही निर्णयो की माँग कर सके।
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Bare facts about poisonous Jatropha curcas.

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित

Updated Information and Links on March 05, 2012

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Comments

Udan Tashtari said…
आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.

एक नया हिन्दी चिट्ठा भी शुरु करवायें तो मुझ पर और अनेकों पर आपका अहसान कहलायेगा.

इन्तजार करता हूँ कि कौन सा शुरु करवाया. उसे एग्रीगेटर पर लाना मेरी जिम्मेदारी मान लें यदि वह सामाजिक एवं एग्रीगेटर के मापदण्ड पर खरा उतरता है.

यह वाली टिप्पणी भी एक अभियान है. इस टिप्पणी को आगे बढ़ा कर इस अभियान में शामिल हों. शुभकामनाऐं.
पंकज भाई,बायो डीजल के रूप में जैट्रोफ़ा को स्वीकारा गया है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। रहीं बात बच्चों के बीमार पड़ने की तो इसके लिये क्या वे साइंसदान हैं जिन्होंने इसके गुणों को जान कर इसकी खेती को प्रोत्साहित किया,बच्चे तो यदि सीधे घर में रखा डीजल पी लें और बीमार हो जाएं तो क्या उस पर रोक लगा देना चाहिये, हरगिज नहीं बल्कि सुरक्षा का दायित्त्व माता-पिता का है। मक्के से बायो ईंधन बनाए उससे बेहतर है कि जैट्रोफ़ा से बनाया जाए। मासिक पत्रिका "अमलतास" के परामर्श मंडल में तो डा.जरियाल(भोपाल) और डा.मायाराम उनियाल(नोएडा)के साथ तो मात्र दो साल पहले तक आप सभी दिग्गजो के वक्तव्य कुछ और ही हैं जिनमें आप सब प्रोत्साहन कर रहे हैं,इतने कम अंतराल में एक बौद्धिक संपदा के विषय में विचार बदल जाना क्या ये प्रमाणित नहीं करता कि अभी शोध जैसे गम्भीर क्षेत्र में परिपक्वता नहीं है। शोध जिला स्तर पर नहिम वैश्विक स्तर पर फ़लदायी होते हैं.. यदि इस प्रेम भरे आग्रह में परिस्थितिवश किंचित कटुता महसूस हो तो क्षमा करें
प्रेम सहित
डा.रूपेश श्रीवास्तव
Pankaj Oudhia said…
आपकी टिप्पणी के लिये आभार। मै पहले रतनजोत का प्रशंसक रहा हूँ। पर कुछ वर्षो पहले मैने दुनिया भर के बीस से अधिक देशो के वैज्ञानिको के साथ मिलकर एक वैज्ञानिक रपट तैयार की तो मुझे पता चला कि इसका व्यापक रोपण हानिकारक है। उसके बाद जब बडे पैमाने पर इसका रोपण आरम्भ हुआ और किसानो की समस्याए सामने आने लगी तो मैने अपने लेखो के माध्यम से उन्हे सामने रखा। सबसे पहले जब मैने डाउन टू अर्थ मे लेख लिखा तो मै अकेला था। आज किसानो और आम लोगो का बडा समूह साथ है और यह बढता ही जा रहा है। सभी चीज की अति बुरी होती है। 84 हजार हेक्टेयर मे एक ही तरह के पौधे को लगाने की बजाय विविधता अपनायी जा सकती है। प्रकृति मे भी विविधता होती है। आप जानते ही होंगे कि भारतीय वैज्ञानिको ने बायोडीजल के 300 से अधिक श्रोत खोजे है। जिनमे से ज्यादातर देसी है। रतनजोत ट्रापिकल अमेरिका का पौधा है। करंज देसी विकल्प है। इसलिये रतनजोत की जगह देसी विकल्पो की बात कही जा रही है।


आपने अमलतास की अच्छी बात बतायी। बहुत सी पत्रिकाए इस तरह परामर्श मंडल मे नाम डालकर अपना व्यापार करती रहती है। परामर्श तो कभी लिया नही जाता। मै आज ही उन्हे नाम हटाने का पत्र लिखता हूँ।

रही बात शोध मे अपरिप्क्व होने की तो आप सही है। परिपक्वता तो जीवनपरंत नही आती विज्ञान के क्षेत्र मे । कोशिश है जो कुछ जानता हूँ उसे आम लोगो को बाँट सकूँ। आपके आयुर्वेद पर लेख मै पढते रहता हूँ। आजकल ऐसे विस्तार से लिखे लेखो का अभाव दिखता है।

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