और कितने मासूमो की जान से खिलवाड से प्यास बुझेगी रतनजोत की???
और कितने मासूमो की जान से खिलवाड से प्यास बुझेगी रतनजोत की???
- पंकज अवधिया
छत्तीसगढ मे 40, उत्तर प्रदेश मे 35, हरियाणा मे 16, राजस्थान मे 28, पिछले कुछ महिनो से लगातार ये आँकडे बढते जा रहे है। ये आँकडे दिल को दुखाने वाले है। ये आँकडे उन बच्चो से सम्बन्धित है जिन्हे पिछले कुछ महिनो मे जहरीले रतनजोत (जैट्रोफा) के बीजो को खा लेने के बाद बडी बुरी दशा मे विभिन्न अस्पतालो मे भर्ती करवाया गया। इनमे नवम्बर और दिसम्बर मे अप्रत्याशित वृद्धि हुयी है क्योकि इस समय पूरे देश मे रतनजोत मे फलन का समय है। बच्चे ही नही बडे भी इसे खा रहे है और अस्पताल पहुँच रहे है। ये बुरे समाचार भारत तक ही सीमित नही है फिलिपिंस से भी ऐसी खबरे आ रही है। ये आँकडे इंटरनेट पर उपलब्ध अखबारो से एकत्र किये गये है। आप तो जानते ही है कि कितने कम देशी अखबार इंटरनेट पर है। जमीनी आँकडे दिल को और दहला देते है। देश भर के अखबार लगभग रोज ऐसी खबरे छाप रहे है। इन मामलो मे से अधिकतर मामले शहर के पास स्थित गाँवो के है। पता नही दूर दराज के गाँव मे कैसे बच्चो का इलाज हो रहा होगा? आम तौर पर अस्पताल पहुँचते ही पीडीतो के पेट से विष निकालने की कोशिश की जाती है। उसके बाद 24 घंटो के भीतर बच्चो को छुट्टी दे दी जाती है। विष को बाहर निकाल देना ही पूरा इलाज नही है। यदि देश के पारम्परिक चिकित्सको की माने तो जहरीले बीज खाने के 15-20 मिनटो मे ही इसका बुरा प्रभाव शरीर पर पडने लगता है। यह दिमाग को सीधे प्रभावित करता है। यही कारण है कि रतनजोत का एक अंग्रेजी नाम ‘साइकिक नट’ भी है। विदेशी वैज्ञानिक इस बात को भली-भाँति जानते है क्योकि इस पर वृहत अनुसन्धान हुये है। इन्ही अनुसन्धानो के बाद ही उन्होने इसे अपनी जमीन से नष्ट करने के आदेश दिये। बच्चो द्वारा रतनजोत के बीज खाये जाने की खबर छापने वाले किसी अखबार मे यह नही लिखा होता कि बच्चो की दिमागी हालत कैसी है। मीडिया की बात तो दूर हमारे चिकित्सक भी शायद ही इस विषय मे कुछ जानते है। चूँकि यह उनके लिये नया पौधा है और उनके पाठयक्रम विदेशी पौधो के विषय मे कम बताते है इसलिये वे भी कुछ नही कर पाते है। अभी तक इस जहरीले पौधे ने सैकडो बच्चो के शरीर विशेषकर दिमाग को नुकसान पहुँचाया है और अभी भी यह क्रम जारी है क्योकि रतनजोत को हजारो हेक्टेयर मे लगाने का कार्य युद्धस्तर पर चल रहा है। मासूमो के साथ हो रही इन घटनाओ से दुख तो होता ही है। साथ ही मन आक्रोशित भी होता है। उम्मीद है हमारे चहेते पूर्व राष्ट्रपति डाँ. कलाम जिन्हे रतनजोत और बच्चो दोनो ही से प्यार है और जिन्होने राष्ट्रपति भवन मे इस विदेशी पौधे को रोपकर एक नया सन्देश देने का प्रयास किया, भी इन मामलो से व्यथित होंगे और उन्हे अपनी भूल का अहसास हो रहा होगा।
वर्ष 2002 मे मै एक कृषि सम्मेलन मे भाग लेने दिल्ली गया तो उस समय कुछ विदेशी कम्पनियो के एजेंट मेरे पास आये और भारत मे रतनजोत की खेती को बढावा देने की पैरवी करने लगे। मैने उनसे कहा आप ब्रिटेन से है तो इसे ब्रिटेन मे ही क्यो नही लगाते? उनका जवाब था कि भारत मे मजदूर और जमीन सस्ती है। यह नही बताया कि रतनजोत का जहर जब वर्षो तक भारतीय जमीन मे फैलेगा तो फिर अंग्रेजो की नील की खेती की याद ताजा हो जायेगी। जमीन बंजर हो जायेगी। फिर यह जानते हुये भला कैसे वे अपनी धरती पर इसे उगाते? आज से कई दशक पहले जब इसे बायोडीजल के नाम पर आफ्रीका मे लगाया गया था तब भी बडी संख्या मे बच्चो के प्रभावित होने की खबरे आयी थी। आम लोग भले ही इसे भूल गये पर वैज्ञानिक दस्तावेजो मे ये मामले बच्चो के नामो के साथ दर्ज है। विदेशी पहले ही से जानते थे कि इस पौधे का वृहत रोपण माने इस तरह से मामलो मे बढोतरी। भला सब जानकर वे कैसे इसे अपनी धरती पर लगाते। उन्हे भारतीय बच्चो की जान कम कीमती जो नजर आती है। उस सम्मेलन के दौरान एजेण्टॉ को जब मैने साफ मना कर दिया तो वे बोल ही पडे कि मजदूर और जमीन के अलावा यहाँ योजनाकार भी सस्ते है। एक के विरोध करने से क्या होता है जब हम योजनाकारो को ही खरीद लेंगे। और उन्होने यह कर दिखाया। आज 84 हजार हेक्टेयर मे रतनजोत को रोपा जा रहा है इसके सभी नकारात्मक पहलुओ को अनदेखा कर। इतने बच्चे प्रभावित हुये और हो रहे है पर क्या कभी किसी राजनेता ने इस ओर ध्यान दिया? विदेशो मे एक बच्चा भी प्रभावित होता तो हाहाकार मच जाता। यहाँ अब भी जयचन्दो की एक पूरी पीढी निवास करती है जिन्हे आस्तीन के साँप की जगह अजगर भी कहा जाये तो कम होगा।
वर्ष 2003 मे जब स्कूल प्राँगण मे रतनजोत लगाने की घोषणा हुयी तो मैने आफ्रीकी अनुभवो पर केन्द्रित एक लेख लिखा और योजनाकारो से कहा कि वे इस पैर पर कुल्हाडी मारने वाले काम को रोके। जवाब मे स्थानीय कृषि विश्वविद्यालय के रतनजोत विशेषज्ञ ने कहा कि चिंता की बात नही है। धीरे-धीरे बच्चे इस बात को समझ जायेंगे और जहरीले बीज खाना छोड देंगे। भला यह कौन सा तर्क हुआ। उन्होने यह भी कहा कि इसके बीज स्वादिष्ट न होकर कडवे होते है। इसलिये बच्चे इसे नही खायेंगे। मुझे बडी हँसी आयी और उनकी किताबी मति पर कोफ्त भी हुयी। किताबी ज्ञान की बजाय एक बीज मुँह मे रख ही लिया होता तो वे अपने को उसे खाने से नही रोक पाते। आज सभी अखबारो से यह बात पढने को मिल रही है है कि स्वादिष्ट होने के कारण बच्चो ने इसे खाया। किसी को मूंगफली का स्वाद आया तो किसी को यह काजू की तरह लगा। मैने उस लेख मे जापान की शोध पत्रिका मे छपे उस शोध पत्र का हवाला भी दिया जिसमे पहले थाइलैण्ड फिर जापान के वैज्ञानिको ने पाया था कि रतनजोत का तेल शरीर से लगने पर कैसर पैदा कर सकता है। यह वही तेल है जिसे किसानो द्वारा निकालने और फिर बेचने की बात हो रही है। इन बातो को नजर अन्दाज कर जब “डीजल नही खाडी से, डीजल मिलेगा अब बाडी से’ का नारा बुलन्द किया गया तो यह स्पष्ट हो गया कि योजनाकारो और राजनेताओ को अपनी चिंता है। देश का जो भी हो इसकी परवाह किसी को नही है। कुछ समय पूर्व रतनजोत के प्रोत्साहन मे कसीदे पढने वाले एक राजनेता रतनजोत से बीमार होते बच्चो की खबरे जानकर बोले कि हमे इसके बारे मे किसी ने पहले से नही बताया। अगले साल चुनाव है। ऐसा ही चलता रहा तो सब गुड गोबर हो जायेगा। यदि नेता पाँच साल मे होने वाले चुनावो से इतना ही घबराते है तो फिर तो हर तीन महिने मे चुनाव होने चाहिये ताकि देश को बर्बाद करने का कुअवसर उन्हे मिल ही न सके। पिछले दिनो हैदराबाद मे मेरे व्याख्यान से उद्वेलित होकर एक सामाजिक कार्यकर्ता ने आव्हान किया कि हमे मिलकर रतनजोत को उखाडने का काम शुरू कर देना चाहिये। मैने कहा यह ठीक हो सकता है उनके नजरीये से पर सबसे पहले उस विचारधारा को उखाड फेकने की जरूरत है जो निज स्वार्थो की ही परवाह करती है। यह विचारधारा हमारे योजनाकारो की है। ये वे लोग है जो निज स्वार्थो के लिये राजनेताओ को बरगला कर मातृभूमि का सौदा करने से नही चूकते है। पहले बेशरम, फिर यूकिलिप्टस और अब जैट्रोफा। आप रतनजोत नष्ट कर इन लोगो को छोड देंगे तो कल फिर ये नये जहर लेकर आ जायेंगे। इन्हे सबक सीखाना होगा। वह भी ऐसा कि सदियो तक कोई भारत भूमि और उसके बच्चो के साथ खिलवाड की बात सोच ही न सके। एक प्रिंस के लिये सारा देश एक हो सकता है तो फिर रतनजोत से बीमार हो रहे सैकडो प्रिंस की रक्षा मे अब देर कैसी?
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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Comments
घुघूती बासूती
आपके सन्देश के लिये धन्यवाद। रतनजोत के नकारात्मक पहलुओ पर हम लोग इस याहू ग्रुप पर चर्चा करते है। यहाँ आपको तमाम जानकारियाँ वैज्ञानिक दस्तावेजो के साथ मिल जायेंगी।
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