चलिये अब मेथी उगाये डायबीटीज के लिये

चलिये अब मेथी उगाये डायबीटीज के लिये

- पंकज अवधिया

दुनिया के अन्य देशो की तरह भारत मे भी मेथी का प्रयोग मधुमेह (डायबीटीज) सहित कई प्रकार के रोगो मे होता है। इसकी पत्तियो से तैयार साग बडी चाव से खायी जाती है जबकि बीजो का प्रयोग मसालो के अलावा दवा के रूप मे भी होता है। देश के बहुत से भागो मे इसकी खेती की जाती है। कृषि विज्ञान का छात्र होने के नाते मुझे भी इसकी खेती के विषय मे पढाया गया। पाठ्य पुस्तको मे एक ही प्रकार की खेती के विषय मे मैने पढा। यह मेथी की रासायनिक खेती थी। बाद मे जैविक खेती कर रहे किसानो से मैने इसकी विषरहित खेती के गुर सीखे पर जब मैने वनस्पतियो से सम्बन्धित पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण का कार्य आरम्भ किया और पारम्परिक चिकित्सको के सम्पर्क मे आया तो आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि मुझे इसकी खेती के 200 से अधिक तरीको का पता लगा।

आम तौर पर मेथी की खेती मे अधिक उत्पादन को देखा जाता है। और जब भी मेथी के प्रयोग की सलाह आधुनिक चिकित्सक लोगो को देते है तो वे बाजार जाकर मेथी खरीद लाते है और विधि अनुसार प्रयोग आरम्भ कर देते है। पर कुछ ही दिनो मे शिकायत आने लगती है कि जैसा असर दिखना चाहिये वैसा दिख नही रहा है। देश के बडे शहरो मे मधुमेह के रोगियो के लिये एक विशेष प्रकार की मेथी बडे महंगे दामो पर बेची जाती है पर उससे भी आशातीत लाभ नही मिलता है। अब प्रश्न यह उठता है कि उच्च गुणवत्ता वाली मेथी कैसे प्राप्त की जाये? यदि आप मेथी की पारम्परिक खेती मे विषय मे जानकारी रखने वाले पारम्परिक चिकित्सक से पूछेंगे तो वे झट से प्रतिप्रश्न करेंगे कि किस बीमारी के उपचार के लिये मेथी की खेती करनी है? यह निश्चित ही चौकाने वाला प्रश्न है। पर उनका प्रश्न गलत नही है। नाना प्रकार के वनौषधीय सत्वो से मेथी के पौधो को उपचारित करके अलग-अलग रोगो के लिये अलग-अलग प्रकार की मेथी उत्पादित की जा सकती है। इन सभी सत्वो मे विशेष वनस्पति की मुख्य भूमिका होती है। जैसे मधुमेह की प्रारम्भिक अवस्था के लिये हल्दी पर आधारित सत्वो का प्रयोग होता है। यदि मधुमेह से प्रभावित ऐसे रोगी की चिकित्सा के लिये मेथी उगानी है जिसे दमा भी हो तो पडरी नामक वनस्पति पर आधारित सत्वो का प्रयोग होता है। मधुमेह के साथ लीवर सम्बन्धित रोग हो तो काली हल्दी आधारित सत्वो का प्रयोग किया जाता है। इस तरह मुस्कैनी, धतूरा, फुडहर, मालकाँगनी, तिखुर, तेन्दु, बीजा, वराहकन्द, गूलर जैसी नाना प्रकार की वनस्पतियो से तैयार सत्वो का प्रयोग किया जाता है। मधुमेह पर वर्तमान मे लिखी जा रही विस्तृत वैज्ञानिक रपट मे मैने 60 प्रकार की खेती से उत्पादित मेथी के दिव्य औषधीय गुणो और उनके मधुमेह की चिकित्सा मे उपयोग के विषय मे लिखा है। यह रपट वर्ष 2009 के अंत तक पूर्ण होगी। वर्तमान मे इसे इकोपोर्ट पर पढा जा सकता है।

मेथी की खेती के लिये खेत की तैयारी से लेकर बीजो के एकत्रण तक 15 से 20 बार तक विशेष सत्वो का प्रयोग किया जाता है। कुछ वर्ष पहले मैने हल्दी पर आधारित सत्व के माध्यम से मेथी का उत्पादन किसानो के साथ मिलकर किया था। इसमे हल्दी तो मुख्य घटक के रूप मे रहती ही है पर साथ ही 22 किस्म की दूसरी वनस्पतियो का भी उपयोग होता है। इस विशेष मेथी को हमने पारम्परिक चिकित्सको को उपहार स्वरूप दिया तो उन्होने विशेष ज्ञान देकर इसे पीडीतो की मदद के लिये वापस लौटा दिया। यह भी कहा कि इस ज्ञान और दवा से कभी पैसे नही कमाना।

आज जब मधुमेह के उपचार के लिये भारतीय मेथी की दुनिया भर मे तूती बोलती है ऐसे समय मे भारतीय किसानो के बीच इन 200 प्रकार की कृषि विधियो का प्रचार कर अलग-अलग रोगो के लिये मेथी का उत्पादन किया जाना चाहिये फिर ग्रामीण स्तर पर ही पारम्परिक चिकित्सको के मार्गदर्शन मे युवाओ की सेवाए लेकर दवा का निर्माण किया जाना चाहिये। साथ ही दुनिया भर मे इन विधियो से उत्पादित मेथी की खूबियो का बखान किया जाना चाहिये ताकि किसानो को सीधा लाभ मिल सके। आधुनिक विज्ञान के साथ यह मुश्किल है कि पहले कई वर्षो तक यह पारम्परिक विधियो को परखेगा। इस बीच विशेषज्ञ विदेशो मे जाकर शोध पत्र के माध्यम से ढिढोरा पीट आयेंगे। कुछ तो इसमे फेर बदलकर अपने द्वारा विकसित विधि घोषित कर देंगे। यदि विदेशियो को बात जम गयी तो हमारे किसानो से पहले वे बाजार मे उत्पाद ले आयेंगे और हम हमेशा के तरह हाथ मलते रह जायेंगे। सच्चे मन से किसानो की सेवा मे जुटी सस्थाए यह बीडा उठाये तो इन पारम्परिक विधियो न केवल बच सकती है बल्कि किसानो के लिये लाभदायक हो सकती है। इसमे शीघ्रता की दरकार है क्योकि विशेषज्ञ पारम्परिक चिकित्सक कम होते जा रहे है और उनका ज्ञान उन्ही के साथ समाप्त होता जा रहा है। मैने जिन 200 प्रकार की विधियो का दस्तावेजीकरण किया है वह तो सागर मे बून्द के समान है। अभी भी अकूत ज्ञान दस्तावेज के रूप मे नही है।

आशा है कि इस लेख को पढने के बाद आप सभी इस दिशा मे विचार करेंगे और अपने स्तर पर इन पारम्परिक विधियो को लोकप्रिय बनाने का प्रयास करेंगे।

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

© सर्वाधिकार सुरक्षित

Comments

"यह भी कहा कि इस ज्ञान और दवा से कभी पैसे नही कमाना।"
प्रभु जिसने भी ये कहा बहुत बढ़िया कहा लेकिन इसको अगर कलयुगी प्राणी मान ले तो भूखे ही मर जाए.अब बताईये अगर ज्ञानी अपना ज्ञान और दवा निर्माता अपनी दवा मुफ्त में देने लग जाए तो खायेगा क्या? स्कूल कालेज और दवा खानों पे ताले लग जायेंगे क्यों की आज के युग में येही आय के प्रमुख स्त्रोत्र हैं.
आप का लेख बहुत सारगर्भित लगा. आप हम जैसे मेथी खाने के शौकीन लोगों को ये बताएं की बाज़ार में मिल रही हरी और दाना मेथी को किस प्रकार खाएं की असर करे. अब उगाना तो अपने बस में है नहीं.
नीरज
Anita kumar said…
मैथी हमारी प्रिय सब्जी है, हमें डायबटीस तो नहीं पेर फ़िर भी अगर आप गमलों में इसे कैसे उगाया जाय सीधे सरल तरीके से बता दें तो अच्छा है।
ज्ञानवर्धक आलेख के लिए बधाई। औषधीय वनस्पतियों की खेती का ज्ञान लुप्त होता जा रहा है, लेकिन एक ओर नए लोग इसमें रुचि ले रहे हैं यह अच्छी बात है। मै ने कभी भी एलोपैथिक दवा का सेवन नहीं किया। पहले केवल आयु्वेद पर निर्भर थे और अब होमियोपैथी पर मेरी पत्नी और बच्चे भी एलोपैथी से बचते हैं। यह पारिवारिक आयुर्वेदिक व होमियोपैथिक ज्ञान से ही संभव हो सका है। आगे भी आप से ऐसी टिप्स मिलती रहेंगी?

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