क्या बीटी बैगन के अलावा कोई विकल्प नही है?
क्या बीटी बैगन के अलावा कोई विकल्प नही है? - पंकज अवधिया
एक विशेष प्रकार के कीडो के लिये विकसित किये गये बीटी बैगन की जरुरत क्या सचमुच भारतीय किसानो को है? क्या उन कीडो का नियंत्रण इतना मुश्किल हो गया है कि हम करोडो भारतीयो की जान दाँव पर लगाकर बीटी बैगन को भारत मे लाने व्यग्र है? यदि वैज्ञानिको से यह सवाल पूछा जाये तो वे शायद कहे कि हाँ, हाँ यह जरुरी है। पर बैग़न की खेती कर रहे किसान ऐसा नही कहेंगे। यह मेरा सौभाग्य है कि मै बैगन की पारम्परिक खेती कर रहे हजारो भारतीय किसानो से मिला हूँ। उनके पास गजब का पारम्परिक ज्ञान है। वे बिना किसी रसायन के बैगन को कीटो से बचा रहे है। उनके ज्ञान का यदि दस्तावेजीकरण किया जाये तो कृषि शोध संस्थानो के भवन छोटे पड जायेगे इन्हे रखने के लिये। ये महज किताबी ज्ञान नही है। किताबी ज्ञान होता तो न जाने कब का अतीत की गहराईयो मे खो जाता। यह ज्ञान खेतो मे फसलो पर प्रयोग हो रहा है और पीढी दर पीढी निखर रहा है। यह ज्ञान बैगन को कीटो से सदियो तक बचा सकता है। यह ज्ञान देश की असंख्य वनस्पतियो से सम्बन्धित है। ये वनस्पतियाँ और इनसे सम्बन्धित ज्ञान सभी की पहुँच मे है। उन वैज्ञानिको की पहुँच मे भी जिन पर आजादी के बाद इस देश ने खरबो रुपये जाया कर दिये है। देश के प्रत्येक भाग मे कृषि शोध संस्थान है पर शायद ही कोई संस्थान किसानो के ज्ञान से कुछ सीख ले रहा है। कितना अच्छा होता कि किसान और वैज्ञानिक मिलकर इस ज्ञान को संवर्धित करते।
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एक विशेष प्रकार के कीडो के लिये विकसित किये गये बीटी बैगन की जरुरत क्या सचमुच भारतीय किसानो को है? क्या उन कीडो का नियंत्रण इतना मुश्किल हो गया है कि हम करोडो भारतीयो की जान दाँव पर लगाकर बीटी बैगन को भारत मे लाने व्यग्र है? यदि वैज्ञानिको से यह सवाल पूछा जाये तो वे शायद कहे कि हाँ, हाँ यह जरुरी है। पर बैग़न की खेती कर रहे किसान ऐसा नही कहेंगे। यह मेरा सौभाग्य है कि मै बैगन की पारम्परिक खेती कर रहे हजारो भारतीय किसानो से मिला हूँ। उनके पास गजब का पारम्परिक ज्ञान है। वे बिना किसी रसायन के बैगन को कीटो से बचा रहे है। उनके ज्ञान का यदि दस्तावेजीकरण किया जाये तो कृषि शोध संस्थानो के भवन छोटे पड जायेगे इन्हे रखने के लिये। ये महज किताबी ज्ञान नही है। किताबी ज्ञान होता तो न जाने कब का अतीत की गहराईयो मे खो जाता। यह ज्ञान खेतो मे फसलो पर प्रयोग हो रहा है और पीढी दर पीढी निखर रहा है। यह ज्ञान बैगन को कीटो से सदियो तक बचा सकता है। यह ज्ञान देश की असंख्य वनस्पतियो से सम्बन्धित है। ये वनस्पतियाँ और इनसे सम्बन्धित ज्ञान सभी की पहुँच मे है। उन वैज्ञानिको की पहुँच मे भी जिन पर आजादी के बाद इस देश ने खरबो रुपये जाया कर दिये है। देश के प्रत्येक भाग मे कृषि शोध संस्थान है पर शायद ही कोई संस्थान किसानो के ज्ञान से कुछ सीख ले रहा है। कितना अच्छा होता कि किसान और वैज्ञानिक मिलकर इस ज्ञान को संवर्धित करते।
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