अरे अब तो तौबा कर लीजिये नोनी से
अरे अब तो तौबा कर लीजिये नोनी से
- पंकज अवधिया
पिछले दिनो नोनी बेचने वाले एक शक्स का फोन आया और उसने मुझसे अपने लेखो मे नोनी की तारीफ लिखने को कहा। फिर यह प्रस्ताव भी दे डाला कि आप तो इसे फसल के लिये उपयोगी लिख दो। किसान इसे डालेंगे तो हजारो लीटर उत्पाद की खपत होगी और हर 100 मि. ली. पर आपके लिये कमीशन होगा। मैने पूछा, बिना परीक्षण किये ही? उसका जवाब था कि इसकी क्या जरूरत है। उत्पाद पर लिखवा देंगे कि परीक्षण हो चुका है। भला किसे फुरसत है इसे जाँचने की। मैने तो उसे घुडक दिया पर उसे मालूम है कि देश मे चन्द पैसे के लिये कुछ भी कह देने वालो की कमी नही है। अमीर से अमीर और गरीब से गरीब सभी को नोनी के नाम पर खुलकर लूटा जा रहा है और कोई इस सुनियोजित लूट का पर्दाफाश करने को तैयार नही है।
नोनी मोरिंडा सिट्रीफोलिया नामक वनस्पति का प्रचलित नाम है। विदेशो मे किये गये अनुसन्धानो से पता चला कि इसमे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढाने की ताकत है। इन अनुसन्धान परिणामो को आते ही कुछ कम्पनियो ने इसे सब मर्ज की दवा बताकर बेचना शुरू कर दिया। पहले-पहल तो महानगरो की हाई-फाई सोसायटी तक यह सीमित रहा फिर इस देश के लिये अभिशाप ‘नेटवर्क मार्क़ेटिग’ के जरीये यह आम लोगो तक पहुँच गया। एजेंटो को यह पता है कि भारतीय जनमानस का औषधीय वनस्पतियो पर गहरा विश्वास है और हर्बल के नाम पर उन्हे कुछ भी बेचा जा सकता है। नोनी से कई प्रकार के उत्पाद बनाये गये और राम बाण क रूप मे उसे बेचा जाने लगा। आपको ब्लड प्रेशर है तो नोनी पीजिए, बाल झड रहे है तो नोनी पीजिए, कुछ भी है तो नोनी पीजिए। पर पीजिए जरूर। आम लोग चक्कर मे आ गये और इस तरह झूठ का स्तर बढता गया। यहाँ तक कहा जाने लगा कि नोनी से बाल भी धो सकते है। कुछ लोगो ने किसानो को नोनी की खेती के नाम पर फाँसना आरम्भ किया। वैसे ही हर्बल खेती का इन दिनो जोर है। कपोल-कल्पित लाभ के आँकडे प्रस्तुत किये गये। अब सभी सीमाओ को पार कर वे इसे फसल मे डलवाने की फिराक मे है। यह घोर आश्चर्य का विषय है कि नोनी पर भारतीय स्तर तो क्या विश्व स्तर पर भी ऐसे प्रयोग नही हुये है जो इसे सब मर्ज की दवा साबित करे। बल्कि कई देशो ने तो इस पर प्रतिबन्ध लगाया हुआ है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने की ताकत तो हजारो भारतीय वनौषधीयो मे है। आप जो खाना रोज खाते है वह भी यही करता है। साधारण से घर पर बन जाने वाले सत्तू मे नोनी से अधिक गुण होते है। फिर इतने महंगे उत्पाद की क्या जरूरत?
नोनी उत्पाद की बिक्री पर मोटा कमीशन दिया जाता है। बाबा रामदेव पर अंगुली उठाने वाले आधुनिक चिकित्सक भी धडल्ले से इसे लेने की सलाह दे रहे है। मैने पहले यह लिखा है कि कैसे छत्तीसगढ के एक गरीब किसान को कर्ज लेकर लाइलाज रोग सिकल सेल एनीमिया से प्रभावित अपने बेटे के लिये नोनी खरीदनी पड रही है। जबकि इस रोग के इलाज मे नोनी की कोई भूमिका किसी ने साबित नही की है। नोनी उत्पाद देशी-विदेशी कम्पनियाँ बना रहे है पर उसे बेचने वाले हमारे आस=पास के लोग है जिन्हे गलत जानकारी देकर बरगलाया गया है और मोटे कमीशन का लालच दिखाया गया है। सम्भवत: तकनीकी मुद्दा होने के कारण कभी मीडीया ने इस पर नही लिखा। यही कारण है नोनी माफिया का साम्राज्य बढता जा रहा है।
मुझे लगभग रोज ही फोन आते है जिसमे लोग नोनी के विषय मे पूछते है। मै समय लेकर विस्तार से सत्य बताता हूँ और देशी फलो पर ध्यान देने पर जोर देता हूँ। मुझे पता नही कितने लोग चेतते है पर एक महिने बाद अवश्य ही सभी फोन दोबारा आते है इस अफसोस के साथ कि आपने सही कहा था। पर वे लोग मजबूरी मे इसे लंबे समय तक पीते रहते है जिन्हे सत्य का ज्ञान नही होता और जिन्हे चिकित्सक इसे लगातार लेने का दबाव डालते रहते है।
नोनी के पौधे भारतीय वनो मे भी है और पारम्परिक चिकित्सा प्रणालियो मे इसके गुणो का वर्णन है पर इसे सब रोगो की दवा नही बताया गया है। इसे सदा ही कुशल वैद्यो के मार्ग-दर्शन मे लेने की बात कही गई है। यह बात और साथ ही कई देशो मे इस पर प्रतिबन्ध की बात हमे चेताती है कि अब समय आ गया है कि इन उत्पादो की खुली बिक्री पर पतिबन्ध लगे। और अभी तक जिन लोगो को इसे बेचा गया है उनके स्वास्थय की जाँच करके उन्हे क्षतिपूर्ति का भुगतान किया जाये। क्षतिपूर्ति का भुगतान तो कम ही सम्भव जान पडता है पर इस पर प्रतिबन्ध ही लगा दिया जाये तो भी काफी राहत की बात होगी।
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधियो से सम्बन्धित पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे है।)
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Comments
badhai pankaj ji
vandana
ise lagaataar dekhne kii aadat daalani hogi. dhanyvaad.