टकला, चने की इल्ली और जैविक खेती कर रहे किसान
पारम्परिक कृषि ज्ञान और किसानो के बीच जीवन के स्वर्णिम पल-१ - पंकज अवधिया टकला, चने की इल्ली और जैविक खेती कर रहे किसान "और टकला है कि नहीं?" यह मेरा अंतिम प्रश्न था| "टकला? वह तो मुझे नहीं पता पर आप अपने मोबाइल की सहायता से उसकी तस्वीर भेजेंगे तो मैं पहचान लूंगा| या फिर आपको मैं एक ई-मेल पता देता हूँ उसमे आप तस्वीरें भेज दे| कल मेरा लड़का पड़ोस के बड़े गाँव से वह तस्वीर ले आयेगा|" उस ओर से आवाज आयी| यह आवाज एक किसान की थी| युवा किसान आधुनिक संचार माध्यमों से जुड़ रहे हैं और कृषि में उनका लाभ उठा रहे हैं यह तो हम सब देख ही रहे हैं पर इस बार बुजुर्ग किसान में युवाओं जैसा उत्साह देखकर मैं अभिभूत हो गया| इन किसान ने बड़े क्षेत्र में चने की फसल लगाई थी| हर साल की तरह इस बार भी चने की इल्ली का आक्रमण हुआ था| पिछले दो सालों से उन्होंने जैविक खेती का रुख किया था| पहले-पहल वे नीम, धतूरे और दूसरी जहरीली वनस्पतियों का प्रयोग करते रहे पर जब उन्होंने राजस्थान से छपने वाले कृषि अमृत मे