तिकडीकन्द के बहाने दुर्लभ औषधीय वनस्पतियो की खेती पर चर्चा
तिकडीकन्द के बहाने दुर्लभ औषधीय वनस्पतियो की खेती पर चर्चा - पंकज अवधिया हम एक घंटे से घने जंगल मे चल रहे थे। बरसात का मौसम होने के कारण हमारी गति बहुत कम थी। चारो ओर घनी वनस्पतियाँ थी। उनके बीच रास्ता बनाकर आगे बढ रहे थे। जंगल मे जगह-जगह पानी भरा हुआ था। जंगल भ्रमण का यह उपयुक्त समय नही था पर हम तो ऐसी वनस्पति को देखने जा रहे थे जिसने पीढीयो से असंख्य मनुष्यो और पशुओ की जीवन-रक्षा की थी। हमने एक पहाडी पार की और दलदली इलाके मे आ गये। साथ चल रहे पारम्परिक चिकित्सको ने थोडी सी खोजबीन की फिर कलमी के एक पुराने पेड को पहचान लिया। इसी के नीचे कुछ पौधे उगे हुये थे। पौधो मे एक-दो पत्तियाँ थी। इससे उनकी पहचान कर पाना मुश्किल था पर पारम्परिक चिकित्सक झट से बोले, यही तिकडीकन्द है। उन्होने अपने पास रखी बोतल निकाली और उसमे भरा सत्व पौधे पर उडेल दिया। “अभी यह कन्द एकत्र करने लायक नही हुआ है। हमने इस पर सत्व डाल दिया है। अब पन्द्रह दिनो के बाद जब हम इसे लेने आयेंगे तो सत्व के प्रभाव से कन्द दिव्य औषधीय गुणो से परिपूर्ण हो जायेगा।“ पारम्परिक चिकित्सको ने बता